भागलपुर के किसान ने नारंगी, मौसंबी, स्ट्रॉबेरी और सेब की खेती कर बढ़ाई आमदनी, कई राज्यों से सीखने आ रहे लोग

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Bhagalpur: बिहार में भी अब सेब, नारंगी, मौसंबी और स्ट्रॉबेरी की खेती होने लगी है। भागलपुर के तेतरी प्रखंड के किसान गोपाल सिंह ने इस नई संभावना को तराशा है। वे परम्परागत खेती के साथ-साथ सेब, मौसंबी, नारंगी, स्ट्रॉबेरी सहित नई तरह के पपीते की खेती कर किसानों को प्रेरित कर रहे हैं। शुरुआत इन्होंने लगभग 6 साल पहले 15 एकड़ में संतरा की खेती से की थी। फिर इन्होंने 10 एकड़ में मौसमी की खेती की। समेकित खेती के रूप में पपीता और केले को भी इन्होंने उसमें शामिल किया।

धीरे-धीरे मिलती गई सफलता से उत्साहित होकर गोपाल ने सेब की भी खेती करनी शुरू कर दी। गूगल की मदद से हरमन-99 एप्पल के बारे में जानकारी ली। इस सेब का उत्पादन 45 से 48 डिग्री तक के तापमान में किया जा सकता है। इसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश से एक हजार पौधा लाकर यहां लगाया। पिछ्ले वर्ष कुछ पेड़ों पर फूल और फल भी आये थे। इस बार सेब का उत्पादन पहले से ज्यादा बेहतर होने की उम्मीद है। उन्होने बताया कि लगभग 200 पौधे कस्टर्ड एप्पल (सीताफल) भी लगाये हैं। बडे पैमाने पर अमरूद की भी खेती शुरू कर दी। 4 एकड़ में इन्होंने अमरुद की खेती की।

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फलों की खेती करने वाले भागलपुर के तेतरी प्रखंड के किसान गोपाल सिंह।

दूर-दूर से उन्नत खेती सीखने आते हैं लोग

गोपाल सिंह से उन्नत खेती के बारे में सीखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस संबंध में धनबाद से आए BCCL कर्मी डीके सिंह और BCCL से वित्त प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त गौरी शंकर सिंह ने बताया कि इनके द्वारा की जा रही उन्नत खेती के बारे में बहुत कुछ सुना था। हमलोग इनसे खेती के बारे में सीखने के लिए आते हैं।

गूगल पर सीखी खेती की नई तकनीक

गोपाल सिंह ने बताया कि मुझे इस तरह की खेती के लिए गूगल से काफी मदद मिली। इसलिए मैं सभी किसानों से कहूंगा कि तकनीकी रूप में वे अपना विकास जरूर करें। मौसंबी, संतरा, सेब, एप्पल बेर, सीताफल और अमरूद की खेती काफी फायदेमंद है। इसके बारे में गूगल से हर तरह की जानकारी मिल जाती है। उन्होंने कहा कि अब किसानों की जमीन कम हो गई है। चावल-गेहूं पर ही आश्रित रहने से नहीं होगा, बल्कि नई तकनीक से खेती पर जोर देना होगा। समेकित खेती को अपनाना होगा।

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गोपाल सिंह के बगीचे में लगे तरह-तरह के फल।

यहां बेचते हैं उत्पादित फलों को

गोपाल सिंह ने बताया कि फल उत्पादन के बाद मौसमी को सबसे पहले सिलीगुड़ी के बाजार में भेजते थे और संतरा की खपत भागलपुर सहित आसपास के जिलों में होती थी, लेकिन इस बार माल कुछ ज्यादा आ गया और छठ पर्व भी समय से थोड़ा विलम्ब से हुआ, जिस वजह से मूल्य में गिरावट आ गई, लेकिन कुल मिलाकर लगभग 200 किलोमीटर के रेंज में फल लोकल स्तर पर बिक जाते हैं। गोपाल सिंह का कहना है कि सरकार को चाहिए कि जब किसान फल का उत्पादन करे तो न सिर्फ लोकल स्तर पर, बल्कि इसके व्यापक बाजार पर भी सरकार ध्यान दे।

सरकारी व्यवस्था से मदद की दरकार

गोपाल सिंह ने कहा कि यहां के किसानों में तकनीकी जानकारी का अभाव है। उन्हें इस तरह की खेती के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। इसके लिए किसानों को सरकार की तरफ से जागरूक करते हुए इन्हें प्रोत्साहन मिले। कहा, मौजूदा सरकार में खेतों तक बिजली की पहुंच से किसानों को राहत मिली है। मौजूदा समय में सरकार के पदाधिकारियों और कृषि पदाधिकारियों की मदद की जरूरत है, जो धरातल पर जाकर किसानों को उनकी फसल के सम्बंध में जानकारी दे सकें। मिट्टी की जांच करते हुए उन्हें समेकित खेती और फलों की अत्याधुनिक खेती के बारे मे जानकारी दे सकें।

किसानों के प्रति बैंकों का रवैया सही हो

गोपाल सिंह ने कहा कि शोषण प्रवृत्ति पर लगाम लगनी जरूरी है। किसानों के साथ बैंकों का उपेक्षापूर्ण रवैया और शोषण प्रवृत्ति गलत है। अगर प्रशासनिक स्तर पर इन समस्याओं पर ध्यान दिया जाए तो किसानों की बड़ी मदद हो जाएगी।

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