यहां जानें बिहारी बाबू के सफलता का ‘राज’, सात साल से भी ज्यादा समय में लिखी गई यह किताब

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Patna: शत्रुघ्न सिन्हा ने गुलजार की फिल्म ‘मेरे अपने’ में काफी फेमस ‘छेनू’ का किरदार निभाया था. उसके बाद ‘कालीचरण’ फिल्म में काम करके शत्रु बॉलीवुड की लाइमलाइट में आए. ‘कालीचरण’ रिलीज होने के बाद 24 घंटे में शत्रुघ्न ने यूनिट मेंबर्स को अपनी एक महीने की सैलरी को बोनस के रूप में देने का ऐलान कर दिया था.

एनीथिंग बट खामोश : द शत्रुघ्न सिन्हा

शत्रुघ्न सिन्हा की बायोग्राफी ‘एनीथिंग बट खामोश : द शत्रुघ्न सिन्हा ‘ लेखक भारती एस. प्रधान ने लिखी है. इसके बारे में शत्रुघ्न ने कहा “मेरी जीवनी मनोरंजक और प्रभावशाली है, क्योंकि इसमें अच्छी बुरी हर तरह की चीजें हैं और इसमें नकारात्मक पहलू को भी ईमानदारी से बताया गया है. मेरा मानना है कि मेरी जीवनी सच्ची और पारदर्शी है. “शत्रुध्न ने कहा “लोग मेरे बारे में बहुत कुछ कहते हैं जो मझे पसंद नहीं है, लेकिन इसमें कुछ भी छिपा नहीं है. इस देश में लोकतंत्र है और यहां सभी को बोलने का अधिकार है. शत्रुघ्न की बायोग्राफी में उनके और बिग बी के बीच मनमुटाव और खटास के बारे में कई बातें लिखी गई हैं, यदि हम दोस्त हैं, तो हमें लड़ने का भी हक है. अगर आज आप मुझसे पूछे तो मैं कहूंगा कि मेरे दिल में अमिताभ बच्चन के लिए बेहद आदर हैं और मैं उन्हें पर्सनालिटी ऑफ द मिलेनियम मानता हूं.

शत्रुघ्न सिन्हा फिल्म सूची
खिलोना (1970), चेतना (1970), परवाना (1971), मेरी अपने (1971), जुम्बलर (1971), एक नारी एक ब्रह्मचारी (1971), रिवाज (1972), बुनियाद (1972), भाई हो तो ऐसा (1972), बॉम्बे टू गोवा (1972), रामपुर का लक्ष्मण (1972), कश्मकश (1973), एक नारी दो रूप (1973 (1977), परमात्मा (1978), दिल्लगी (1978), अमर शक्ति (1978), मुकाबला (1979), शिरडी के साइ बाबा (1977) 1979), जानी दुश्मन (1979), हीरा-मोती (1979), गौतम गोविंदा (1979), काला पत्थर (1979), चंबल की कसम (1980),, क्रांति (1981), नसीब (1981) मंगल पांडे (1982), हाथीकडी (1982), तीसरी आँख (1982), गंगा मेरी मां (1983), क़यामत (1983), जीन नाई दोओंगा (1984), आंधी-तूफ़ान (1985), कातिल (1986), इलज़ाम 1986), असली नकली (1986), खुदगर्ज(1987), इन्सानियत के दुश्मन (1987), लोहा (1987), सागर संगम (1988), ख़ून भरी मांग (1988), गंगा तेरे देश में (1988), रणभूमि (1991), बेताज बादशाह (1994), प्रेम योग (1994), ज़माना दीवाना (1995), दीवाना हूं पागल नहीं (1998), आन: मेन इन वर्क (2004) और रक्ता चरित्र (2010) इत्यादि.

शत्रु ने फिल्मों के साथ-साथ राजनीति में भी अपना हाथ आजमाया. बिहारी बाबू यूनियन मिनिस्टर रहे हैं. वे बिहार के पटना साहिब से बीजेपी सासंद रहे हैं. अंंत एक बात शत्रुघ्न सिन्हा की हिंदी सिनेमा में इंट्री को लगभग 50 साल होने को हैं लेकिन संयुक्त बिहार के इलाके से मनोज वाजपेयी व सुशांत सिंह राजपूत को छोड़कर एक भी बड़ा हीरो नजर नहीं आता है.

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